Friday, September 29, 2023
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Desi Jugaad ये गांव के किसान करते है पानी के बिच टापू पर खेती, टापू पर ट्रैक्टर ले जाने का जुगाड़ देख कहोगे वाह

Desi Jugaad ये गांव के किसान करते है पानी के बिच टापू पर खेती, टापू पर ट्रैक्टर ले जाने का जुगाड़ देख कहोगे वाह आप सभी जानते है की खेती करना कितना कठिन काम होता है बात की जाए खेती करने की तो आप जानते ही होंगे खेती करने के लिए बैलो की जरुरत होती है और खेतो में या तो ट्रेक्टर की मदद से या तो बैलो की मदद से खेती की जा सकती है पर आज आप जो देखोगे यह बिकुल असंभव काम है जो इन किसानो ने कर दिखाया है यह कहानी एक बूढनी गांव परवन नदी के पास बसा है जिसकी हम आपको कहानी बताने जा रहे है।

Desi Jugaad ये गांव के किसान करते है पानी के बिच टापू पर खेती, टापू पर ट्रैक्टर ले जाने का जुगाड़ देख कहोगे वाह

बात की जाए इस गांव की तो यहाँ के किसानो को बेहद कठिनाईयो का सामना करना पड़ रहा है इनकी मदद कोई नहीं क्र रहा है जिसकी वजह से यहाँ के लोगो ने आत्मनिर्भर होकर ही अपने टापू पे के खेतो की जुताई करने के लिए नंदी का सामना कर नावों में ट्रेक्टर को चढ़ा कर नंदी पार कर अपने टापू पे के खेतो पर ट्रेक्टर को ले गया और वह के खेतो की जुताई करी

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सलाम है इन 90 धरतीपुत्रों को

Desi Jugaad ये गांव के किसान करते है पानी के बिच टापू पर खेती, टापू पर ट्रैक्टर ले जाने का जुगाड़ देख कहोगे वाह उन्होंने हालात के चलते खुद अपनी राह तय की, चुनौती से निपटने का हल और वक्त भी उन्होंने खुद तय किया। तीन दशक से सरकार उनकी राह आसान करने में ‘सेतुÓ नहीं बन रही, लेकिन वे हैं कि जान का जोखिम उठाकर भी अपनी मां को सरसब्ज करने पहुंचते हैं। हम बात कर रहे हैं गांव बूढऩी के उन 90 धरतीपुत्रों की जिनके जब्बे को परवन नदी भी सलाम करती है।

90 किसानों की लगभग 480 बीघा जमीन परवन नदी के बीच टापू पर है स्थित

90 किसानों की लगभग 480 बीघा जमीन परवन नदी के बीच टापू पर है स्थित बूढनी गांव परवन नदी के पास बसा है। बपावर थाने से कुछ किमी की दूरी पर स्थित इस गांव के किसानों की कहानी निराली है। यहां के करीब 90 किसानों की लगभग 480 बीघा जमीन परवन नदी के बीच टापू पर स्थित है। नदी में पानी का बहाव व जल स्तर कम होने के बाद दिसम्बर के अंतिम या जनवरी के प्रथम सप्ताह में किसान छोटे टै्रक्टर को दो नावों की सहायता से नदी का करीब 100 मीटर का पाट पार कर टापू पर ले जाते हैं। इसके बाद थे्रसर की सहायता से सोयाबीन की फसल को तैयार किया जाता है। एक बार टै्रक्टर नदी पार कर टापू पर पहुंच गया तो तीन-चार माह खेती का सारा काम निपटने के बाद ही वापस लाया जाता है। गांव के किसान नदी पर छोटी पुलिया बनाने की मांग पिछले तीन दशक से कर रहे हैं। पुकार कोई नहीं सुन रहा।

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