kadaknath business : कड़कनाथ मुर्गे का व्यवसाय करके सिरमौर की सोनिया आज मोटी कमाई कर रही है। कड़कनाथ मुर्गे से जितनी आज वह प्रतिदिन कमाई कर रही है, इससे पहले वह कभी नहीं कर पाती थी। साफ शब्दों में कहे तो कड़कनाथ मुर्गे ने सोनिया को आर्थिक तंगी से निजात दिलाई है।
कड़कनाथ पालन से आई समृद्धि
पुरूषों के साथ महिलायें भी स्वरोजगारी बनकर सफलता प्राप्त कर रही है। उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि वे किसी से पीछे नहीं है। अपना परिवार चलाने के लिये भरपूर सहयोग दे रही है। सिरमौर के ग्राम मौहरा की सोनिया आदिवासी पहले गरीबी में जीवनयापन करती थी। वे और उसके पति मेहनत मजदूरी करके जीवनयापन करते थे। गरीबी के कारण घर चलाना बहुत मुश्किल लगता था। कभी-कभी तो दिनभर की मेहनत मजदूरी करके इतनी भी आय नहीं होती थी कि जीवन यापन किया जा सके।
ऐसे शुरू किया कड़कनाथ मुर्गे का व्यवसाय
पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारियों से मिलने पर उन्होंने क्लस्टर आधारित स्वरोजगार स्थापित करने की समझाइस दी। मौहरा ग्राम की 25 आदिवासी महिलाओं को जोड़कर मुर्गी पालन करने के लिये अंशपूजी 25 हजार रूपये की लागत से एक हजार कड़कनाथ चूजों से व्यवसाय प्रारंभ किया। पशुपालन विभाग द्वारा 4400 रूपये ऋण राशि में 3300 रूपये अनुदान दिया गया। कड़कनाथ चूजे जैसे ही बड़े हुये मुर्गे हाथों-हाथ बिकने लगे। पूरे मौहरा ग्राम में कड़कनाथ मुर्गों की प्रसिद्धि हो गयी। क्योंकि कड़कनाथ मुर्गे लेना है तो आपको झाबुआ जाना होगा। पहली बार ऐसा संभव हुआ कि मौहरा ग्राम में कड़कनाथ मुर्गे उपलब्ध हुये।
200 रूपए प्रति मुर्गे होती है आमदनी
सोनिया आदिवासी बताती है कि कड़कनाथ मुर्गा बेचकर मैं और क्लस्टर की 24 महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से समृद्ध हुई बल्कि इससे संपन्नता भी आयी। गांव में कड़कनाथ मुर्गों की बड़ी मांग है एक मुर्गा 200 रूपये में बिक जाता है। उन्होंने बताया कि होने वाली आमदनी से हमने एक हजार कड़कनाथ चूजे और खरीदे हैं। इससे हमें आर्थिक लाभ हो रहा है।