Aseel Hen farming: इस नस्ल की मुर्गी के आगे कड़कनाथ मुर्गी भी है फेल आप भी इसका पालन करके हो सकते है मालामाल भारत में किसान खेती करने के अलावा पशुपालन और मुर्गी पालन भी बड़े स्तर पर करते हैं. इससे किसानों की अच्छी कमाई हो जाती है गांवों में कई घर ऐसे मिलेंगे जो मुर्गी पालते हैं और उसके अंडे खाते हैं। सरकार की तरफ से भी इसे प्रोत्साहित किया जाता है। कुछ इलाकों में मुर्गा लड़ाने का भी खेल खेला जाता है। ऐसे में ये मुर्गे काफी महंगे बिकते हैं। ये मुर्गे या मुर्गियां असील नस्ल के होते हैं। इनकी डिमांड इतनी ज्यादा होती है कि इनके अंडे 100 रुपये का एक तक बिकता है। असील मुर्गी का वजन 4 से 5 किलो तक का होता है। 5 किलो वजन का मुर्गा 2 से 2.5 हजार रुपये तक का मिल जाता है। देशी मुर्गे-मुर्गी फार्म के तौर पर कम और बैकयार्ड पोल्ट्री के तहत ज्यादा पाले जाते हैं।

खूब है इसकी डिमांड
कड़कनाथ को जीआई टैग मिला है। यही वजह है कि ये अंडा सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहता है, लेकिन इसके मांस और अंडे की कीमत को लेकर भ्रम दूर करना बेहद जरूरी है, क्योंकि बाजार में ऐसी मुर्गी भी मौजूद है, जिसका अंडा-मांस कड़कनाथ से भी महंगा बिक रहा है। किसान तक की रिपोर्ट के मुताबिक, 4 से 5 किलोग्राम वजन वाली असील मुर्गी बाजार में 2,000 से 2,500 रुपये की मिल रही है।

असील नस्ल की मुर्गियों में क्या है खासियत
असील नस्ल के मुर्गियों की बात करे तो इनकी लंबी ऊँची गर्दन होती है। साथ ही इनके लंबे-लंबे मजबूत पैर भी होते है। इनका मुंह भी लंबा होता है। साथ ही ये मुर्गे भारी भी होते हैं। इनके वजन की बात करे तो करीब 5 किलो तक के ये मुर्गे मिल जाते हैं। ये मुर्गे बहुत मजबूत होते हैं, और देखने में अच्छे बड़े और लड़ाकू दिखते हैं। इनकी लड़ाई देखना लोग खूब पंसद करते है। आइये जानते हैं इनके इस्तेमाल और पालन के बारे में।
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100 रुपये में बिकता है एक अंडा
असील नस्ल की मुर्गियों का पालन मांस उत्पादन के लिए किया जाता है। हालांकि असील नस्ल की मुर्गियों की अंडा देने की क्षमता अन्य नस्ल की मुर्गियों से कम होती है। असील मुर्गी के अंडों का इस्तेमाल दवाइयां बनाने में किया जाता है। सर्दियों में अंडों की बढ़ती डिमांड के बीच असील मुर्गी का अंडा दवाई के तौर पर भी खाया जा रहा है। वैसे तो असील मुर्गी के अंडे दाम कुछ 100 रुपये है, लेकिन ऑनलाइन-ऑफलाइन बाजार में मांग-सप्लाई के आधार पर अंडे की कीमत का निर्धारण होता है

अन्य मुर्गियों के मुकाबले काफी बड़ी होती है असील मुर्गी
असील मुर्गियां अन्य मुर्गियों की तुलना में काफी अलग हैं। यह बहुत ही बड़ा होता है। इन नस्ल का पालन बैकयार्ड फार्म में भी किया जा सकता है। पुराने समय में नवाबों को बड़ा मुर्गे लड़ाने का शौक था। उस खेल का विजेता यही असील मुर्गा है। यही वजह है कि इसे फाइटर कौम भी कहते हैं। दूसरी नस्लों की तुलना में असील मुर्गा भी कई वैरायटी में उपलब्ध है। बाजार में इसकी रेजा, टीकर, चित्ताद, कागर, नूरिया 89, यारकिन और पीला वैरायटी खूब फेमस है।

असील नस्ल के मुर्गे-मुर्गियो को इस क्षेत्रों में पला जाता है
असील नस्ल के मुर्गे-मुर्गियां दक्षिणी पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में पाई जाती हैं। इन क्षेत्रों में इस नस्ल के मुर्गे-मुर्गियों को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इसमें रेजा (हल्की लाल), कागर (काली), यारकिन (काली और लाल), टीकर (भूरी), चित्ता (काले और सफेद), नूरिया 89 (सफेद) और पीला (सुनहरी लाल) आदि नाम से यह मुर्गी की नस्ल बेहद मशूहर है।