GOAT FARMING: इस नस्ल की बकरी का पालन करके हो जाइये मालामाल, कम खर्चे में अधिक फायदे का सौदा कम लागत, आसानी से रख-रखाव और बढ़िया मुनाफा, यही वजह है कि देश में बकरी पालन (Goat farming) का व्यवसाय बहुत तेजी से बढ़ रहा है. बकरी पालन किसानों की आय का मुख्य जरिया बनता जा रहा है ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पशुपालन को आय का मुख्य स्रोत माना जाता है. ऐसे में छोटे और सीमांत पशुपालक ज्यादातर बकरी पालन का काम करना पसंद करते हैं. यह गाय-भैंस पालने से कम खर्चीला और अधिक फायदे का सौदा है.
ये बात आप भी जानते है . वैसे तो बकरियों की कई नस्लें हैं जिनका पालन किसान या व्यवसायी करते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि बकरी की नस्लों का चयन स्थान के हिसाब से करना चाहिए
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बरबरी बकरी (Barbari Goat)

बरबरी बकरी भी उत्तर प्रदेश में पाई जाती है इसका पालन एटा, अलीगढ़ और आगरा जैसे जिलों में होती है. इसका पालन मांस के लिए किया जाता है. नली की तरह कान लिए इस नस्ल का पालन दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों के लिए अच्छी मानी जाती है बारबरी बकरियों को मुख्यतः मांस के लिए पाला जाता है. उनके छोटे आकार के बावजूद, उनके पास अच्छी तरह से विकसित मांसपेशियां हैं, जो उनके मांसलता में योगदान करती हैं. बारबरी बकरियों का मांस अपनी कोमलता और बेहतरीन स्वाद के लिए जाना जाता है.
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जमुनापारी बकरी (Jamunapari Goat)

जमुनापारी बकरी की ये नस्ल उत्तर प्रदेश के मथुरा, ईटावा और उसके आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है. ये दूध और मांस, दोनों के लिए बेहतर मानी जाती है. इसे बकरी की सबसे अच्छी नस्ल कहा जाता है. लंबे कानों वाली ये बकरी 2 से 2.5 ढाई लीटर दूध प्रतिदिन देती है जमुनापारी बकरियां बड़े आकार के जानवर होते हैं. जमुनापारी बकरियां मुख्यतः दुग्ध उत्पादन के लिए पाली जाती हैं. वे अपनी उच्च दूध उपज के लिए जाने जाते हैं, कुछ असाधारण व्यक्ति इससे भी अधिक उत्पादन करते हैं. दूध वसा की मात्रा से भरपूर होता है और अक्सर इसका उपयोग पनीर, दही और घी जैसे विभिन्न डेयरी उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है.
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बीटल बकरी (Beetal Goat)

बीटल बकरी, जिसे अमृतसरी बकरी के नाम से भी जाना जाता है, घरेलू बकरी की एक नस्ल है जो भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में पाई जाती है. इसका नाम पंजाब प्रांत के बीटल शहर के नाम पर रखा गया है. बीटल बकरियों को मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए पाला जाता है, पंजाब के गुरुदासपुर, फिरोजपुर और अमृतसर के आसपास पाई जाने वाली इस नस्ल को दूध और मांस, दोनों के उत्पादन के लिए जाना जाता है. 12 से 18 महीने के बीच पहली बार बच्चे को जन्म देती है. वे पंजाब क्षेत्र में प्रचलित कृषि प्रणालियों के अनुकूल हैं.