Parshuram Janm Katha: Bhagwan Parshuram: ब्राम्हण कुल में जन्म लेने के बाद भी कर्म से क्षत्रिय कैसे बने भगवान परसुराम, पढ़े इनके जन्म से जुडी कथा भगवान विष्णु के अवतार परशुराम भगवान के बारे में आप बहुत सी बातें जानते होंगे। लेकिन क्या आप जानते है की भगवान परसुराम ब्राम्हण होते हुए भी कर्म से क्षत्रिय कैसे बने तो आइये इस कथा के माद्यम से हम आपको बताते है। स्कंद पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार, वैशाख शुक्ल तृतीया को भगवान परशुराम ने माता रेणुका के गर्भ से जन्म लिया वे ऋषि जमदग्नि की संतान हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार, परशुराम की मां रेणुका और महर्षि विश्वामित्र की माता ने एक साथ पूजन किया और प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद की अदला-बदली कर दी. इस अदला-बदली के प्रभाव के अनुसार, परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और विश्वामित्र क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी ब्रह्मर्षि कहलाए. ऐसी रोचक है परसुराम कथा।
जानिए भगवान परशुराम नाम के नाम का रहस्य

धार्मिक पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम का यह नाम अपने साथ फरसा अर्थात परशु रखने के कारण पड़ा. धर्म ग्रंथों में उल्लेख किया गया है की जब त्रेतायुग में सीता स्वयंवर के समय प्रभु श्री राम द्वारा शिवजी का धनुष टूटने के कारण उनके अनन्य भक्त परशुराम स्वयंवर स्थल पर पहुंचे और धनुष टूटने पर बहुत क्रोधित हुए, किंतु जैसे ही उन्हें श्रीराम की वास्तविकता का आभास हुआ, वह अपना धनुष बाण उन्हें समर्पित कर संन्यासी का जीवन व्यतीत करने पुनः वापस चले गए।
Bhagwan Parshuram: ब्राम्हण कुल में जन्म लेने के बाद भी कर्म से क्षत्रिय कैसे बने भगवान परसुराम, पढ़े इनके जन्म से जुडी कथा
वैशाख शुक्ल तृतीया धूमधाम से मनायी जाती परशुराम जयंती
आपको बता दे की वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ पुरे देश में भगवन का जनमोतसव मनाया जाता है। दक्षिण भारत में कोंकण और चिपलून में भगवान परशुराम के कई मंदिर हैं. इन मंदिरों में वैशाख शुक्ल तृतीया को परशुराम जयंती बहुत ही धूमधाम से मनायी जाती है और उनके जन्म की कथा को भी सुना जाता है. इस दिन परशुराम जी की पूजा कर उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा ही अधिक महत्व है. जिससे शुभ फलो की प्राप्ति होती है।
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अक्षय तृतीया को हुआ त्रेतायुग का आरंभ

आपको जानकारी के लिए बता दे की अक्षय तृतीया को हुआ त्रेतायुग का आरंभ इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों अपनी उच्च राशि में विराजमान होते हैं. अतः मन और आत्मा दोनों से व्यक्ति बलवान रहता है, इसलिए इस दिन आप जो भी कार्य करते हैं, वह मन एवं आत्मा से जुड़ा हुआ रहता है. ऐसे में अक्षय तृतीया के दिन किया गया पूजा-पाठ और दान-पुण्य बहुत ही महत्वपूर्ण तथा प्रभावी होते हैं. इसी तिथि को नर नारायण, परशुराम, हयग्रीव के अवतार हुए थे और इसी दिन त्रेतायुग का आरंभ हुआ था.इस लिए इस दिन का एक विशेष महत्त्व है।