MP Betul: बैतूल के महुए ने विदेश में मचाया धमाल, लेकिन वहां शराब नहीं ऑर्गेनिक चाय बनाएंगे अब तक आप सभी लोग यही जानते होंगे की महुए से देसी कच्ची दारु बनाई जाती है पर यह तो बहुत ही अलग से काम की चीज़ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अनोखा फल है इसके कई फायेदे होते है शरीर की कई बीमारिया भगायी जा सकती है इससे पर गावो में इसका उपयोग नशे का सेवन करने के काम में लाया जाता है महुए से केवल शराब बनती है लेकिन यूरोप के देशों में महुए से ऑर्गेनिक चाय भी बनाई जा रही है. जो वहां काफी प्रसिद्ध है और अब इस ऑर्गेनिक चाय को बनाने के लिए मध्यप्रदेश से 200 टन महुआ इंग्लैंड भेजा जाएगा मध्य प्रदेश के नौ जिलों से महुआ इकट्ठा किया जा रहा है. इसमें से उम्दा क्वालिटी का 100 टन महुआ केवल बैतूल जिले से जाएगा.
महुआ इकट्ठा करने वाले आदिवासियों का होगा फायदा
इस सौदे से महुआ इकट्ठा करने वाले आदिवासियों की सालाना आमदनी तीन से चार गुना बढ़ेगी और हर साल बढ़ती जाएगी. बैतूल के आदिवासी वन विभाग की मदद से बेहतरीन क्वालिटी का महुआ कलेक्शन कर रहे हैं. पहली बार उन्हें मालूम चला कि जिस महुए को वो मिट्टी के मोल बेचते थे वो अब उनके लिए सोना बन गया है.

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सतपुड़ा के जंगलों में महुए के लाखों पेड़ हैं जो पूरी तरह रसायन और प्रदूषण मुक्त हैं. यहां महुए का आदिवासियों के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक महत्व होता है. हर साल आदिवासी महुआ बीनकर उसकी शराब बनाते हैं या बेहद कम दाम पर व्यापारियों को बेच देते हैं. अब यही महुआ इन आदिवासियों की तकदीर बदलने वाला साबित होगा क्योंकि अब इस महुए से शराब नहीं बल्कि ऑर्गेनिक चाय बनेगी और वो भी इंग्लैंड में. पहली बार आदिवासियों को मालूम हुआ है कि महुए से चाय भी बन सकती है और उसके कई गुना ज्यादा दाम भी इन्हें मिलेंगे.
महुए के औषधीय गुणों से बनेगी ऑर्गेनिक चाय
महुए के औषधीय गुणों के कारण इंग्लैंड सहित यूरोप के कई देशों में महुए से ऑर्गेनिक चाय का चलन बढ़ रहा है. वहां महुआ नहीं होता. पिछले साल इंग्लैंड की ओ फॉरेस्ट कम्पनी ने मध्यप्रदेश में पाए जाने वाले बेस्ट क्वालिटी ऑर्गेनिक महुए के लिए डिमांड भेजी थी. इसके बाद मध्यप्रदेश में वन विभाग ने महुआ कलेक्शन के लिए प्रदेश के 9 जिलों का चयन किया. मध्यप्रदेश से कुल 200 टन महुआ इंग्लैंड भेजा जा रहा है जिसमें से 100 टन महुआ केवल बैतूल जिले के दक्षिण वन मंडल से जाएगा. हर साल आदिवासी जमीन पर गिरने वाले महुए को इकठ्ठा करते हैं जिसमें समय और मेहनत लगती है. जमीन पर गिरे महुए में मिट्टी लगने से उसकी क्वालिटी भी खराब हो जाती है. आदिवासी इस महुए को सुखाकर महज 20 से 25 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से व्यापारियों को बेच देते हैं जिसमें मुनाफा कम मेहनत ज्यादा है.
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अब आदिवासियों को प्रतिकिलो 120 से 130 रुपये तक दाम मिलेंगे
दक्षिण वन मंडल ने आदिवासियों की समितियां बनाकर उन्हें 1250 पेड़ों से नेट के माध्यम से महुआ कलेक्शन की ट्रेनिंग दी है. क्वालिटी महुए से अब आदिवासियों को प्रतिकिलो 120 से 130 रुपये तक दाम मिलेंगे जो पहले से लगभग चार गुना ज्यादा हैं. आदिवासियों के जीवन में जन्म से मृत्यु तक हर अनुष्ठान में महुए का खासा महत्व रहता है. लेकिन अब तक ये महुए से केवल शराब बनाना जानते थे. सतपुड़ा के जंगलों में मिलने वाला महुआ पूरी तरह रसायन मुक्त,ऑर्गेनिक है.

आने वाले वर्षों में अगर यूरोपीय देशों में इस महुए की मांग बढ़ती है तो महुए का एक एक फूल आदिवासियों के लिए कीमती हो जाएगा. अकेले महुआ ही आदिवासियों के सालभर की आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत बन जाएगा.